आज के दौर में जहां शादियों को दिखावे और फ़िजूलखर्ची का प्रतीक माना जाने लगा है, वहीं कुचामन सिटी से एक प्रेरणादायक मिसाल सामने आई है। यहां खान मोहल्ला निवासी डॉ. नाजिल कुरैशी और फतेहपुर निवासी सना के निकाह को एक सादगीपूर्ण, दहेजमुक्त और आदर्श समारोह के रूप में संपन्न किया गया। इस विवाह ने न केवल समाज को सोचने पर मजबूर किया बल्कि दहेज प्रथा और फिजूलखर्ची के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी दिया।

दहेज नहीं, सिर्फ मेहमाननवाज़ी स्वीकार की
इस प्रेरणादायक निकाह में ना ही कोई नेग लिया गया और ना ही कोई लेन-देन हुआ। वर पक्ष की ओर से न तो एक रुपये का नेग स्वीकार किया गया और न ही नारियल—सिर्फ आने वाले मेहमानों की मेहमाननवाज़ी की गई। यह शादी दो शिक्षित और जागरूक परिवारों के बीच आपसी सहमति और सामाजिक सुधार की भावना से सम्पन्न हुई।

परिवारों ने लिया समाज सुधार का संकल्प
दूल्हे डॉ. नाजिल कुरैशी, जो मरहूम सुलेमान कुरैशी के पोते व कम्पाउण्डर मोहम्मद सलीम कुरैशी के पुत्र हैं, और दुल्हन सना, जो फतेहपुर निवासी अब्दुल हमीद रहमान की सुपुत्री हैं—इन दोनों परिवारों ने मिलकर समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने और विवाह को सादगी से करने का संकल्प लिया। इस निर्णय को दोनों पक्षों के रिश्तेदारों और समाजजनों ने भी सराहा और खुले दिल से समर्थन किया।

समारोह में विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति
इस आदर्श विवाह समारोह में फतेहपुर विधायक हाकम अली और जिला न्यायाधीश अयूब खान विशेष रूप से शामिल हुए और वर-वधु को दुआएं दीं। जिला न्यायाधीश अयूब खान ने इसे समाज के लिए एक संदेश बताया और कहा कि,
“ऐसी शादियाँ समाज में जागरूकता का प्रमाण हैं और हमें आगे आकर ऐसी पहल का समर्थन करना चाहिए।”

सामाजिक संगठन से भी जुड़ा है परिवार
दूल्हे के चाचा मोहम्मद शकील, जो मुस्लिम एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष हैं, समाज में शिक्षा और जागरूकता फैलाने के लिए निरंतर कार्यरत हैं। उन्होंने बताया,
“हमने नेग के रूप में कुछ भी स्वीकार नहीं किया, बल्कि सिर्फ अतिथियों की दुआएं और उपस्थिति को सम्मान दिया।”
वहीं, दूल्हे के छोटे चाचा एवं सहायक विकास अधिकारी नदीम अहमद कुरैशी ने भी इस शादी को समाज के लिए एक नई दिशा देने वाला बताया।

समाज को मिली नई दिशा
इस विवाह ने यह साबित कर दिया कि शादी को भव्यता और खर्चों की बजाय प्रेम, समझदारी और सादगी से भी भव्य बनाया जा सकता है। कुचामन सिटी ही नहीं, बल्कि पूरे जिले में इस विवाह की चर्चा है और इसे एक “आदर्श विवाह” के रूप में देखा जा रहा है।
यह शादी सिर्फ एक समारोह नहीं थी, बल्कि यह एक सामाजिक आंदोलन की तरह थी—दहेज के खिलाफ, फिजूलखर्ची के विरोध में, और सादगी को अपनाने के समर्थन में। ऐसे विवाह समाज को जागरूक बनाते हैं और एक नई सोच की नींव रखते हैं।