“भंवर म्हाने पूजण दे… गणगौर” के मधुर स्वर से गूंजते कुचामन शहर की गलियों में गणगौर महोत्सव का उल्लास चरम पर है। कुंवारी कन्याओं के मनचाहा वर पाने और नवविवाहिताओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ यह पावन पर्व पूरे 16 दिनों तक श्रद्धा और उत्साह से मनाया जा रहा है।

गणगौर, राजस्थान की पारंपरिक आस्था से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें महिलाएं और युवतियां सोलह श्रृंगार करके माता गौरी और भगवान शिव की पूजा करती हैं। इस अवसर पर पूरे शहर में भक्तिमय माहौल देखने को मिल रहा है, जहां हर गली-मोहल्ले में महिलाएं गणगौर के लोकगीत गाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रही हैं।
भव्य कलश यात्रा निकाली गई
गणगौर महोत्सव के तहत शहर के पोस्ट ऑफिस के पास से कनोई पार्क तक बैंड-बाजों के साथ एक भव्य कलश यात्रा निकाली गई। सिर पर मंगल कलश धारण किए नवविवाहित महिलाएं और कुंवारी कन्याएं पारंपरिक परिधानों में सजी-धजी नजर आईं। कलश यात्रा में शामिल महिलाओं ने पूरे उत्साह और भक्ति भाव के साथ गणगौर माता की आराधना की।

कलश यात्रा में शामिल सैकड़ों महिलाओं ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ कलश यात्रा निकालकर गणगौर माता की पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर महिलाओं ने बैंड-बाजे के मधुर संगीत पर गणगौर माता के भजनों का गुणगान किया, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।
गणगौर माता से सुख-समृद्धि की कामना
महिलाओं ने गणगौर माता से परिवार की सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना की। गणगौर पूजा का यह उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी समुदाय को जोड़ने का कार्य करता है।

इस अवसर पर मधु अग्रवाल, CA हर्षिता अग्रवाल, संतोष मोर, राधा शेखराजका ,संतोष शेखराजका शीतल मीठड़ीवाला ,सेवदा परिवार और केशू जी स्वीट्स परिवार की महिलाओं सहित शहर की कई गणमान्य महिलाएं और स्थानीय निवासी भी बड़ी संख्या में मौजूद रहे, जिन्होंने इस आयोजन को भव्यता प्रदान की। आगामी दिनों में भी शहरभर में गणगौर पर्व की धूम बनी रहेगी और महिलाएं पूरे भक्ति भाव के साथ इस उत्सव को मनाती रहेंगी।
गणगौर पूजा का विशेष महत्व
आपको बता दे की गणगौर पर्व पर महिलाएं सुबह-शाम विशेष रूप से ईसर-गौर (शिव-पार्वती) की पूजा-अर्चना करती हैं। मिट्टी की सुंदर मूर्तियों को श्रृंगार कर घरों में रखा जाता है और प्रतिदिन उन्हें जल अर्पित किया जाता है। महिलाएं 16 दिनों तक व्रत रखकर माता गौरी को प्रसन्न करने के लिए गीत गाती हैं और अंतिम दिन बड़े उत्साह के साथ इन मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।

गणगौर केवल पूजा-अर्चना का पर्व ही नहीं, बल्कि सौभाग्य, प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। इस दौरान शहरभर में उत्सव जैसा माहौल रहता है और हर ओर रंग-बिरंगे परिधानों में सजी महिलाएं पारंपरिक लोकगीतों के साथ आनंद मनाती हैं।
श्रद्धा और उल्लास का संगम
शहर में गणगौर महोत्सव को लेकर महिलाओं में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। महिलाएं और युवतियां विभिन्न समूहों में एकत्र होकर उत्सव मनाते हुए गणगौर माता के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर रही हैं।

पूरे 16 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में श्रद्धालुओं की भक्ति देखते ही बनती है। यह पर्व राजस्थानी संस्कृति और परंपराओं का जीवंत उदाहरण है, जो हमारी लोकआस्थाओं और धार्मिक विश्वासों को मजबूती प्रदान करता हैं ।